Diwali 2023: क्या आपको पता है पटाखों का इतिहास, कैसे हुआ आतिशबाजी का जन्म…

आपको बता दे की भारत में आतिशबाजी के इतिहास पर लिखी एक किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ फायरवर्क्स इन इंडिया बिटवीन एडी 1400 एंड 1900’ जो की महान लेखक पीके गौड़ द्वारा लिखी गई थी। जिससे पता चलता है की सन 1518 में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार की शादी में जोरदार आतिशबाजी की गई थी।इसी के साथ हमें सदियों पुरानी पेंटिंग में भी आतिशबाज़ी का दृश्य देखने को मिलता रहता है।
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लेकिन बदलते समय के साथ आतिशबाजी के ये मनोरत दृश्य प्रदूषण और बीमारी के रूप में बढ़ता चला गया। गौरतलब है की देश की सर्वोच्च अदालत को हर बार अब आतिशबाजी
पर नियंत्रण लगती आ रही है। सरकारों को जानबूझ कर इसपे प्रतिबंध और जुर्माने का ऐलान करना पड़ता है। साथ ही साथ डॉक्टर्स को भी एडवाइजरी जारी करनी पड़ती है।
भारत की राजधानी दिल्ली का वातावरण सर्दियों के शुरू होने से पहले जहरीला होने लगता है। हालाकि इसमें चलने वाले वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुए का दोष तो रहता ही है। साथ ही साथ दशहरा और दिवाली की आतिशबाजी से स्थिति अत्यधिक गंभीर हो जाती है।
कितना खतरनाक होता है आतिशबाजी का धुआं?
आपने देखा होगा दीवाली के बाद बम-पटाखों-फुलझड़ियों का धुआं आसमान के रंग और हवा दोनो को खराब कर देता है। साथ ही साथ वाहनों और फैक्ट्रियों से अटे शहरों में इसका असर अधिक नजर आता है। इसके बावजूद इसके समाज का एक वर्ग आतिशबाजी को धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करने से जोड़ता है।
अपको बता दें कि पटाखों में सल्फर डाइऑक्साइड, कैडमियम, कॉपर, लेड, और नाइट्रेटक्रोमियम जैसे पदार्थों का इस्तेमाल होता है। उनसे आपके फेफड़ों, त्वचा, आंखों को गंभीर नुकसान होता है। श्वसन तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है।